राजस्थान चुनाव में महिलाओं की स्थिति बेहद खराब, क्या इस बार होगा सुधार?

राजस्थान का राजनीतिक वातावरण कई अन्य क्षेत्रों की तरह ऐतिहासिक रूप से पुरुष प्रतिनिधियों पर हावी रहा है। महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बेहतर बनाने के प्रयासों के बावजूद संख्या लगातार चुनौतियों की कहानी बयां कर रही है। ऐसी ही स्थिति राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में भी बनी हुई है।

1952 से कुल 1069 महिला उम्मीदवारों ने राजस्थान के विधानसभा चुनावों में भाग लिया जिसमें कुल उम्मीदवारों का 46.69% हिस्सा है। हालांकि उनमें से केवल 18.52% यानी मात्र 198 महिलाएं जीत को हासिल करने में कामयाब रही। यह दर चुनाव जीतने में महिलाओं को कठिनाइयों का सामना करती है। शायद इससे भी अधिक इस बात की तथ्य यह है कि 64% महिला उम्मीदवारों (1069 में से 689) ने अपने इलेक्शन डिपॉजिट को सीज लिया था।

महिलाओं के लिए राजनीति के अंधेरे वर्ष

वर्ष 1990 और 1993 महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए विशेष रूप से निराशाजनक थे। 1990 में 77.41% महिला उम्मीदवारों ने अपनी इलेक्शन डिपॉजिट को जब्त कर लिया और 1993 में यह संख्या 75.25% पर रही। इन वर्षो ने महिलाओं की राजनीतिक आकांक्षाओं पर महत्वपूर्ण असर डाला था।

2018 के चुनाव में महिलाओं की भागीदारी

2018 के चुनावों में 144 महिला उम्मीदवारों की एक रिकॉर्ड संख्या देखी गई जो सभी महिला उम्मीदवारों का 76% हिस्सा जमा कर रहे थे। 

महिलाओं के प्रतिनिधित्व का रास्ता चुनौतीपूर्ण रहा है। लेकिन फिर भी 1953 में यशोदा देवी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर उपचुनाव जीतकर पहली महिला विधायक बनीं। उन्हें 14862 वोट मिले जिससे उनके प्रतिद्वंद्वी को 6411 वोटों से हराया गया। 1954 में कमला बेनीवाल दूसरी महिला विधायक बनीं जिन्होंने उपचुनाव जीता था।

हाल के चुनावों में महिलाओं की स्थिति

वर्ष 2008 और 2013 में प्रोग्रेस देखी गई जबकि 28 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव जीता और 104 महिला उम्मीदवारों के डिपॉजिट को जब्त कर लिया गया।

इन वर्षों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में प्रोग्रेस के बावजूद चुनौतियां बनी रहती हैं। स्थिति में सुधार करने के लिए राजनीति में महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बढ़ोतरी की आवश्यकता है।

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